(Rabi Crops) रबी की फसल की कटाई, बुवाई और मौसम की पूरी जानकारी

दोस्तों आप सभी जानते हैं कि हमारा भारत देश एक कृषि प्रधान देश है यहां पर काफी मात्रा में खेती की जाती है। इसलिए आप सभी को जानना बहुत जरूरी है कि Rabi Ki Fasal Kise Kahte Hai, रवि की फसल कब काटी जाती है, रवि की फसल कब बोई जाती है, चलिए इस आर्टिकल में हम रवि की फसल के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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रबी की फसल की बुवाई का समय अक्टूबर के महीना में होता है। जबकि मार्च और अप्रैल महीने में फसल की कटाई की जाती है। इस मौसम में रवि की फसल की सिंचाई के लिए बहुत कम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है।

रबी की फसल क्या होती हैं?

जो फसल सर्दी के मौसम से लेकर वर्षा ऋतु के बीच में बोई जाती है। उस फसल को Rabi Ki Fasal Kehte Hai. रबी की फसल की बुवाई अक्टूबर महीने से लेकर नवंबर महीने तक की जाती है तथा इन फसलों की कटाई मार्च महीने से लेकर अप्रैल महीने के बीच की जाती है। Rabi Ki Fasal को उगाते समय कम तापमान की आवश्यकता होती है तथा इन्हें पकते हुए खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। रबी की फसल को सर्दी की फसल के नाम से भी जाना जाता है।

रबी की फसल कब बोई जाती हैं?

Rabi Ki Fasal उगाने के लिए अधिकांश करके कम तापमान की जरूरत होती है, इसलिए इसकी बुवाई अक्टूबर महीने से लेकर नवम्बर महीने के बीच में की जाती है।

रवि की फसल की कटाई कब होती है?

Rabi Ki Fasal पकते समय खुश्क वातावरण की जरूरत होती है, इसलिए रबी की फसल की कटाई मार्च महीने से लेकर अप्रैल महीने के बीच में होती है।

रबी की फसल कौन कौन सी होती है?

1.गेहूं

मध्य पूर्व के लेवांत क्षेत्रों से आई हुई गेहूं एक प्रकार की घास है, जिस की खेती अधिकांश करके दुनिया भर में की जाती है। अगर देखा जाए दुनिया भर में गेहूं धान्य फसलों में मक्का के बाद सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली दूसरी फसल है। जबकि धान की फसल तीसरे स्थान पर आती है।

गेहूं का प्रयोग नूडल्स, सेवई, रस, पास्ता, दलिया, केक, आटा, रोटी आज बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा गेहूं की फसल से निर्मित भूसे को अथवा गेहूं के दाने को पशुओं को भी खिलाया जाता है। इस प्रकार रबी की फसल में गेहूं इंसानों के लिए एक खाद्य पदार्थ है।

2.जई

उत्तरी पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में हरे चारे के साथ जई की बुवाई की जाती है। जिसे पशुओं को खिलाया जाता है। दोमट या भारी दोमट मिट्टी जहां जल निकासी का उचित प्रबंध होता है वहां पर जई की खेती काफी अच्छी होती है। जिस प्रकार से गेहूं और जौ की बुवाई के लिए खेत तैयार किया जाता है, ठीक उसी प्रकार से जई की बुवाई के लिए खेत तैयार की जाती है। जई शरद ऋतु की फसल मानी जाती है, इसलिए ठंडी और शुष्क जलवायु में इसका पैदावार काफी अच्छा होता है।

जई की फसल की बुवाई करने के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी होनी चाहिए, और इसकी बुआई अक्टूबर महीने में की जाती है। और इस फसल की कटाई मार्च महीने में की जाती है। जई की कई किस्में हैं, जैसे : यूपीओ-94, बुंदेल जई-581, हरियाणा जई-114 आदि।

जई की फसल काटने की बाद इस के दाने और भूसे को अलग करते हैं। भूसा पशुओं को खिलाने के काम आता है, वहीं पर दाने को पीसकर आटा बनाया जाता है। जिसकी रोटी खाई जाती है। जई के आटे के बिस्किट भी बनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में जई की पैदावार अधिक होती है।

3.जौ

जौ की खेती बिहार, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में प्रमुख रूप से की जाती है। जौ का प्रयोग पशु आहार, चारा, शराब, बेकरी, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड आदि इसी प्रकार के अन्य कार्यों में किया जाते हैं। 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान अथवा समशीतोष्ण जलवायु के मौसम में जौ की बुवाई की जाती है। बलुई, बलुई दोमट, बलुई छारीय अथवा लवणीय भूमि में जौ की पैदावार काफी ज्यादा होती है।

जौ की कई किस्में होती हैं, जैसे : एनडीबी-1173, के-603, नरेंद्र जौ 1 2 3, हरीतिमा, प्रीति, मंजुला, ज्योति, लखन, जागृति आदि। अगर आप सही समय पर जौ की बुवाई कर रहे हैं, तो प्रति हेक्टेयर भूमि पर कम से कम 100 किलोग्राम जौ की बुवाई करनी चाहिए। अगर आपको बुवाई करने में देर हो गई है तो जौ बीज की मात्रा में 25% की बढ़ोतरी कर देनी चाहिए। जौ की बुवाई का सही समय नवंबर के पहले सप्ताह से आखरी सप्ताह तक होता है। लेकिन ज्यादा से ज्यादा दिसंबर मध्य तक आप जौ की बुवाई कर सकते हैं।

4.अलसी

हमारे भारत देश में लगभग 2.96 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में अलसी की खेती की जाती है। अलसी एक प्रकार का औद्योगिक तिलहन फसल है जिसका सभी भाग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से बहुत ही उपयोगी होता है। अलसी के बीज से निकलने वाला तेल खाने के साथ-साथ दवाइयां बनाने में प्रयोग किया जाता है। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्रों में अलसी के तेल से साबुन बनाना, दीपक जलाना, तेल खाना आदि कार्यों में यूज किया जाता है।

अलसी के पौधे का काष्टीय भाग तथा छोटे-छोटे भागों को कागज बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। अगर क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाए तो भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। जहां पर विश्व के कुल क्षेत्रफल का 15% क्षेत्रफल पर अलसी की खेती की जाती है। तथा अलसी उत्पादन की दृष्टि से भारत का तीसरा स्थान है। भारत के राज्य मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, राजस्थान, महाराष्ट्र में अलसी की प्रमुख रूप से खेती की जाती है।

5.तोरिया

खरीफ रबी के बीच में बोई जाने वाली तोरिया एक प्रकार की तिलहनी फसल है। तोरिया की उन्नत प्रजाति जैसे : टी-9, भवानी, पीटी-303, तपेश्वरी। जो 3 महीने के आसपास पक जाती हैं, सितंबर के दूसरे पखवाड़े में आप तोरिया की भवानी प्रजाति की बुवाई कर सकते हैं।

6.मक्का

मक्का एक प्रमुख खाद्य फसल है, जिसे किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगा सकते हैं। लेकिन अगर देखा जाए तो बलुई दोमट मिट्टी में मक्के की पैदावार काफी अच्छी होती है। मक्का वैसे तो खरीफ ऋतु की फसल माना जाता है, लेकिन जहां पर सिंचाई की अच्छी व्यवस्था है वहां पर रबी की फसल के रूप में भी मक्का बो सकते हैं।

मक्के की फसल को जानवर के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है, जबकि मनुष्य मक्के की रोटी, मक्के को भुन कर खाना, मक्के को उबालकर खाना, पॉपकॉर्न, कॉर्नफ्लेक्स आदि खाने के लिए प्रयोग करते हैं। जहां पर पानी का निकास काफी अच्छा होता है, वहीं पर उष्ण एंव आर्द जलवायु के मौसम में मक्के की खेती की जाती है।

7.कुसुम

भारत में कुसुम की खेती मुख्य रूप से तेल के लिए की जाती है। क्योंकि कुसुम के बीजों में 24 से 36% तक तेल की मात्रा पाई जाती है। कुसुम एक तिलहनी फसल होता है, और कुसुम के द्वारा निकाला गया तेल मनुष्यों के खाने के काम आता है। कुसुम का तेल हृदय रोगियों के लिए एक गुणकारी औषधि होती है।

इसके अलावा कुसुम के तेल से ढाई साबुन और पेंट आदि उत्पाद भी बनाए जाते हैं। कुसुम की पिराई करने के बाद इसके खली में लगभग 42% तक प्रोटीन पाई जाती है, जिसे पशुओं के आहार के रूप में प्रयोग किया जाता है। भारत के लगभग 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर कुसुम की खेती की जाती है। जिससे लगभग 400000 टन कुसुम का उत्पादन हो जाता है।

8.आलू

आलू जिसकी मांग बाजार में 12 महीने होती है, इसलिए इसे सब्जियों का राजा भी कहा जाता है। आलू एक अर्द्धसहनशील सब्जी वाली फसल होने के नाते इसकी खेती रबी मौसम या शरद ऋतु के मौसम में की जाती है। कुपोषण एवं भुखमरी से बचाने के लिए आलू एक उत्तम पौष्टिक आहार होता है।

आलू की किस्में जैसे : कुफरी अशोक, कुफरी पुखराज, कुफरी सूर्या, जैसे उन्नत किस्म की आलू बुवाई करने पर या बहुत जल्दी तैयार हो जाती है। आलू की फसल बोने के बाद लगभग 70 से 90 दिन के बीच आलू की फसल तैयार हो जाती है।

9.राई और सरसों

राई के दानो का रंग काला होता है, जबकि सरसों के दानों का रंग पीला होता है। सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के प्रथम पखवारा तक राई बोने का अच्छा समय होता है। राई के बुआई के 15 दिनों बाद खेत मे उगे हुए खरपतवार निकाल कर राई के पौधों की आपसी दूरी 15 सेमी कर देनी चाहिए।

इसके अलावा राई और सरसों के पौधों पर अनेक प्रकार के कीट जैसे : सरसों की आरा मक्खी, चित्रित कीट की पहचान, गोभी की तितली, पत्ती में सुरंग बनाने वाले कीट, माहू आदि। इन कीड़ों से बचाने के लिए राई और सरसों के पौधों पर समय-समय पर दवा का छिड़काव करते रहें।

10.पीली सरसों

पीली सरसों की कई प्रजातियां हैं जैसे : पितांबरी, नरेंद्र सरसों-2, के-88 आदि। प्रति हेक्टेयर भूमि पर कम से कम 4 किलोग्राम पीली सरसों का बीज बोना चाहिए। अगर आप गेहू की अच्छी फसल लेना चाहते हैं, तो आपको सितंबर के पहले पखवाड़े में पीला सरसों की बुवाई कर देनी चाहिए।

इसके अलावा पीली सरसों की बुवाई करने के बाद 12 से 15 दिन के बाद खेत में उगे भी खरपतवारों को निकाल दें। और पीली सरसों की आपसे दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर कर दें। पीली सरसों में भी कई प्रकार के कीट लग जाते हैं। जैसे : आरा मक्खी, चित्रित बग, बालदार सूड़ी, माहू, पत्ती सुरंगक कीट आदि। फसल को कीट से बचाने के लिए समय समय पर उचित दवा का छिड़काव करना चाहिए।

11.शिशु मक्का

शिशु मक्का एक स्वादिष्ट आहार है, इसके अलावा पत्तियों में लिपटी होने के कारण शिशु मक्का पर कीटनाशक दवाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। शिशु मक्का में कैल्शियम, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लोहा व विटामिन पाया जाता है, इसके अलावा शिशु मक्का में फास्फोरस की मात्रा सबसे अधिक होती है। शिशु मक्का का प्रयोग खीर, हलवा, लड्डू, बर्फी, टिक्की, कोफ्ता, सब्जी, सूप, सलाद, पकोड़ा आदि बनाने के लिए किया जाता है।

शिशु मक्का की खेती भारत के आंध्र प्रदेश, मेघालय, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि राज्यों में तथा चीन और थाईलैंड जैसे देशों में भी की जाती है। शिशु मक्के की खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोपरि मानी जाती है, भारत में दिसंबर और जनवरी महीने को छोड़कर बाकी महीनों में शिशु मक्के की बुवाई की जा सकती है। जबकि दक्षिण भारत में शिशु मक्के की खेती पूरे साल की जा सकती है।

12.चना

चना एक दलहनी फसल है जिसे दालों का राजा कहा जाता है। चने की हरी पत्ती साग बनाने के लिए, जबकि सूखा दाना से सब्जी और दाल बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसके अलावा चने के छिलके को पशुओं को खिलाया जाता है। फसल की बुवाई के बाद जब चने में फूल आ जाते हैं, तो वर्षा इसके लिए हानिकारक हो जाती है।

चने की खेती के लिए 24 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान सबसे अच्छा माना जाता है। चने की प्रमुख किस्में : एल 550, सी 104, जीएनजी 1669 (त्रिवेणी), जीएनजी 1499, जीएनजी 1992 आदि। चने की बुवाई 10 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच कर देनी चाहिए।

13.मटर

भारत में मटर उगाने वाले क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश सबसे प्रमुख स्थान पर है। उत्तर प्रदेश में लगभग 4.34 लाख हैक्टेयर भूमि पर मटर की फसल उगाई जाती है। मटर की फसल की खेती के लिए गंगा के मैदानी भागों की गहरी दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयोगी मानी जाती है। मटर की फसल की बुवाई मध्य अक्टूबर महीने से नवंबर महीने तक की जाती है। लेकिन मटर की फसल का उपर्युक्त बुवाई का समय अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर का प्रथम सप्ताह तक होता है।

मटर की प्रमुख प्रजातियां पाई जाती हैं जैसे : रचना, मालवीय मटर 2, अर्पणा, के पी एम आर 400, के पी एम आर 522, पूसा प्रभात, पूसा पन्ना आदि। मटर की खेती में कई प्रकार के रोग भी लगते हैं जैसे : रतुआ, आर्द्रजड़ गलन, चांदनी रोग, तुलासिता/रोमिल फफूंद, तना मक्खी, माहूं, मटर का अधफंदा, कटीला फली भेदक, आदि।

14.मसूर

भारत के कई राज्य जैसे बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से मसूर की खेती की जाती है। चना मटर की अपेक्षा मसूर की खेती कम तापमान तथा सूखा एवं नमी के प्रति अधिक सहनशील फसल होता है। मसूर के 100 ग्राम दाने में औसतन 4.8 मिलीग्राम नियासिन, 0.51 मिलीग्राम थाईमिन, 0.21 मिलीग्राम राइबोफ्लेविन, 7 मिलीग्राम लोहा, 68 मिलीग्राम कैल्शियम, 3.2 ग्राम रेशा, 60.8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 1.3 ग्राम वसा, 25 ग्राम प्रोटीन पाया जाता है। 

मसूर की कई उन्नत प्रजातियां हैं जैसे : एल0-4076 शिवालिक, पन्त मसूर-406, जे0एल0एल0-1 आदि। मसूर की सही बुवाई का समय 20 अक्टूबर से लेकर 15 नवंबर तक होता है। मसूर की फसल में भी कई प्रकार के रोग लगते है जैसे : कटुआ, माहू, रतुआ आदि।

रबी राजमा

बरसीम

मशरुम

रवि की फसल में होने वाली खरपतवारों के नाम

  • बथुआ
  • सेंजी
  • दूधी
  • कासनी
  • जंगली पालक
  • अकरी
  • जंगली मटर
  • कृष्णनील
  • सत्यानाषी
  • हिरनखुरी
  • मोथा
  • कांस
  • जंगली जई
  • चिरैया बाजरा
  • अन्य प्रकार की घासें

Rabi Ki Fasal Kise Kahte Hai. (FAQ)

1. रवि फसल क्या है, उदाहरण सहित?

रवि की फसल अक्टूबर से नवंबर में बोई जाती है, जबकि इसे बसंत ऋतु में काटा जाता है। रवि की फसल के अंतर्गत पीली सरसों, शिशु मक्का, चना, मटर, मसूर, आलू मशरूम, आदि फसलें आती है।

2. रवि फसल की अवधि क्या होती है?

रवि की फसल अक्टूबर से नवंबर के महीने में बोई जाती है, जबकि शुष्क और गर्म वातावरण की ये फसलें, अप्रैल के महीनों में रवि की फसल को काटी जाती हैं।

3. गेहूं की फसल कौन सी है?

गेहूं की फसल रबी की फसल मानी जाती है।

4. चना कौन सा फसल है?

चना का फसल रवि की फसल के अंतर्गत माना जाता है। चने की दाल में पोषक तत्व अधिक पाए जाते हैं, इसीलिए चने के संग्राम दाने में औसतन 11 ग्राम पानी, 4.5 ग्राम वसा, 61.57 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 21.1 ग्राम प्रोटीन पाया जाता है।

5. चना रबी है या खरीफ की फसल?

चना की फसल रबी की फसल मानी जाती है।

6. रबी की फसल का दूसरा नाम क्या है?

रबी की फसल का दूसरा नाम – सर्दी की फसल

7. रबी की फसलें कौन सी होती है?

अक्टूबर नवंबर के महीनों में होने वाली फसलों की बुवाई रबी की फसलें कहलाती हैं। रवि की फसलों की बुवाई में कम तापमान की आवश्यकता तथा फसल पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। रबी की फसलें जैसे : सरसों, मटर, अलसी, मसूर, चना, जौ, आलू, गेहूं आदि।

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